Saturday, 21 April 2012

First Poem of My Life


प्रकृति के उपहार 

हे प्रभु जन पर किया तुमने बड़ा उपकार,
देकर धरा को शीतल सुमन बरखा बहार,
पावन  है ये जल वृष्टि और ये जलधार, 
जगा जन जगी धरा और ये संसार,
बदलो से बरसती ये जलधार,
जगाती है मन में करलव के उत्सव विहार,

ये मौसम और ये नजारा, 
मन को लगता है कितना प्यारा,
मन फिरता है जैसे एक भवरा हो आवारा, 
ज्ञान  के चक्षु और दूरदर्शिता का लेकर  सहारा, 
स्वयं के जीवन की नौका को पार उतारा,

कवि - लोमेश  कुमार